Wednesday, May 4, 2016

लोकतंत्र शर्मिन्दा है !


नेताओं के कारनामों से
लोकतंत्र शर्मिन्दा है.
मंहगाई मुँह फाड़ रही,
मंहगें लौकी,भिंडी,टिंडा है.
न्याय का गला घुट रहा,
और भ्रष्टाचारी ज़िंदा है.
दल-दल में कोई फ़र्क नही है,
सब ही करते निंदा है.
नेताओं के कारनामों से
लोकतंत्र शर्मिन्दा है.

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