इस देश में आदमी धर्म शास्त्र, वेद-पुराण
क़ुरान,बाईबिल को तो भलि-भाँति जानता है,
पर देश के संविधान को शिद्दत से कम ही मानता है.
मेरे गाँव-गली में आज भी साक्षर और निरक्षर लोगों का
जीवन धर्म-शास्त्रों से ही शासित होता है.
बहुत कम लोग होगें जिनका जीवन संविधान से प्रभावित होता है.
आज भी मासूम और निरपराध लोग पुलिस की लाते खाते हैं,
न्याय,बराबरी और समता-समानता उनके लिए हवाई बातें हैं.
अगर आज भी जनता में संविधान की थोड़ी बहुत भी समझ आ जाए,
तो इन नेताओं की क्या औकात जो धर्म, मंदिर-मस्जिद के नाम पर बाँट पाएँ.
सत्ता का स्वाद इन नेताओं की पीढ़ियों ने ही है चखना,
इसलिए जनता को धर्म, मँहगाई, ग़रीबी में है उलझाए रखना.
यह सब शासन-प्रशासन और प्रबंधन में बैठे लोगों का षडयंत्र है.
15 अगस्त को हम फिर ढूँढेगें कि कहाँ हमारा लोकतंत्र है ????
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