अब नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
हालाँकि बदला कुछ खास नहीं है.
सिर्फ माता-पिता का साया उठा है ,
उस घर से , अलावा सब वैसा ही तो है,
भाई-भाभी, बच्चे , पडोसी सब.
पर पता नहीं अब क्यों नहीं ,
लगता मन ,
सोचता हूँ क्या खास था तब ,
दौड़ा चला आता था मैं ,
बेवजह छुट्टियां लेकर ,
अब छुट्टी हो तब भी ,
नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
हालाँकि बदला कुछ खास नहीं है.
सिर्फ माता-पिता का साया उठा है ,
उस घर से , अलावा सब वैसा ही तो है,
भाई-भाभी, बच्चे , पडोसी सब.
पर पता नहीं अब क्यों नहीं ,
लगता मन ,
सोचता हूँ क्या खास था तब ,
दौड़ा चला आता था मैं ,
बेवजह छुट्टियां लेकर ,
अब छुट्टी हो तब भी ,
नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
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