समता के दीप जले -------------- छिन रहा है गरीब के मूंह का निवाला हो रहा है शोषण चहूँ और , अब समता का दीप जले तो बात बने . सरे आम लुटती इज्जत अबलाओं की कोई सबला बन इन दुष्टों का नाश करे तो बात बने . गर्भ में मारी जा रही है कन्यायें , इनका कोई संताप हरे तो बात बने. नेता भ्रष्टाचार में डूबे है आकंठ , इनमें से कोई गाँधी बने तो बात बने . लोकतंत्र के प्रहरी बन कर न्याय की जो बातें करते, करते वे ही अन्याय हैं . इनका चेहरा साफ बने तो बात बने . खो रहा चैनों अमन साम्प्रदायिकता के दुष्टों से , अमन की कोई राह खुले तो बात बने छीन रहा है गरीब के मुंह का निवाला हो रहा है शोषण चहूँ और , अब क्रांति का शंख बजे तो बात बने . अब समता के दीप जले तो बात बने . |
समसामयिक मुद्दों पर लिखने में मेरी रूचि हमेशा से रही है और इसी का परिणाम यह कवितायेँ हैं .
Thursday, June 28, 2012
समता के दीप जले --------------
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