आज कल मैं रोज गुजरता हूँ
हमारे मंत्रियों के बंगलों के सामने से !
मुझे हर बार दिख जाता हैं ,
कोई न कोई मजदूर ,
बुहारता उनका आँगन ,
या काटता हुआ बढ़ी हुई घास !
या फिर हाथ में लिए हुए बन्दुक
मुश्तैदी से खड़ा हुआ कोई जवान ,
या सेल्यूट ठोकता कोई सिपाही !
या हाथ में लिए कागज़ के दस्ते
मंत्री के दरवाज़े को तकती बूढी आखें .
और कभी कभी में कौतुहल से झांक आता हूँ
अंदर मंत्री जी के आफिस में ,
वो अपने खुशामदिदों के साथ
पी रहे होते है शरबत , चाय या लस्सी !
और इधर सूखता रहता है उन लोगों का खून
जो खड़े है दरवाज़े के बहार !
मुझे कभी नही दिखी मंत्री जी के माथे या चेहरे पर
चिंता की लकीर या उत्सुकता का भाव
बहार खड़े उन लोगों के प्रति ??????????
और मैं फिर सोचता हुआ निकल जाता हूँ
भारत के सफल लोकतंत्र के बारे में ?????? |
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