जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है , गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है ! पूछता है क्यों सत्य का गला रुंध है ? क्यों न्याय पर छा रही अन्याय की धुंध है ? क्यों लुटती नारी आज यहाँ ,क्यों पौरुष खाक छानता है ? जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है , गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है ! क्यों कन्या भ्रूण हत्याएं होती है ? क्यों अबलायें रोती है ? क्यों पग पग पर मौत की घाटी है ? क्यों सत्य अहिंसा पर मिलती लाठी है ? लोकतंत्र का प्रहरी क्यों दर दर की धूल फांकता है ? जब भी कोई संविधान की सीमा लांघता है , गाँधी-नेहरु का देश जवाब मांगता है ! |
समसामयिक मुद्दों पर लिखने में मेरी रूचि हमेशा से रही है और इसी का परिणाम यह कवितायेँ हैं .
Friday, August 17, 2012
देश जवाब मांगता है !
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